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11 Jan 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस 46
प्रश्न 1. भारत सरकार अधिनियम, 1919 के प्रमुख प्रावधानों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। इसने भारत में संवैधानिक और राजनीतिक विकास को किस प्रकार प्रभावित किया? (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत सरकार अधिनियम, 1919 के प्रमुख प्रावधानों पर चर्चा कीजिये।
- भारत सरकार अधिनियम, 1919 की आलोचनाओं पर चर्चा कीजिये।
- भारत के संवैधानिक और राजनीतिक विकास पर इसके प्रभावों की चर्चा कीजिये।
परिचय:
भारत सरकार अधिनियम, 1919 (जिसे मोंटागु-चेम्सफोर्ड सुधार के रूप में भी जाना जाता है) भारत में स्वशासन की दिशा में उठाया गया प्रमुख कदम था। इस अधिनियम द्वारा सीमित राजनीतिक सुधारों के साथ राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि तथा भविष्य के संवैधानिक विकास हेतु आधार प्रदान किया गया था।
मुख्य भाग:
भारत सरकार अधिनियम, 1919 के प्रमुख प्रावधान:
- विषयों का पृथक्करण: इसके द्वारा केंद्रीय एवं प्रांतीय विषयों का सीमांकन और पृथक्करण करके प्रांतों पर केंद्रीय नियंत्रण को कम किया गया था। केंद्रीय और प्रांतीय विधायिकाओं को अपने संबंधित विषयों की सूची पर कानून बनाने हेतु अधिकृत किया गया था।
- इसके द्वारा प्रांतीय विषयों को दो भागों में विभाजित किया गया था- हस्तांतरित और आरक्षित।
- प्रांतों में द्वैध शासन की शुरूआत: इस अधिनियम द्वारा प्रांतीय सरकार के स्तर पर कार्यपालिका हेतु द्वैध शासन की शुरुआत की गई थी।
- आरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर द्वारा किया जाना था और हस्तांतरित विषयों का प्रशासन विधान परिषद के निर्वाचित सदस्यों में से नामित मंत्रियों द्वारा किया जाना था।
- केंद्र में द्विसदनीय विधायिका: इस अधिनियम द्वारा केंद्रीय स्तर पर द्विसदनीय विधायिका की स्थापना की गई, जिसमें राज्यों की परिषद (उच्च सदन) और विधानमंडल (निचला सदन) शामिल थीं।
- मताधिकार का विस्तार: इसके द्वारा संपत्ति, कर या शिक्षा के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया गया था।
- महिलाओं को भी वोट देने का अधिकार दिया गया था।
- सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का विस्तार: इसके द्वारा सिखों, भारतीय ईसाइयों, एंग्लो-इंडियन और यूरोपीय लोगों के लिये अलग निर्वाचन मंडल का प्रावधान करके सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत का विस्तार किया गया था।
- लोक सेवा आयोगों का गठन: इसके द्वारा एक लोक सेवा आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया था। इस क्रम में सिविल सेवकों की भर्ती हेतु वर्ष 1926 में एक केंद्रीय लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई थी।
संवैधानिक और राजनीतिक विकास पर प्रभाव:
- सीमित स्वशासन: इस अधिनियम द्वारा भारतीयों को विधायी निकायों में निर्वाचित होने की अनुमति देकर स्वशासन का एक सीमित स्वरूप प्रदान किया गया था। हालाँकि वास्तविक शक्ति और निर्णय लेने का अधिकार अभी भी ब्रिटिश अधिकारियों के हाथों में था।
- केंद्र में विधायिका का वायसराय और उसकी कार्यकारी परिषद पर कोई नियंत्रण नहीं था।
- राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि: प्रतिनिधिक प्रणाली की शुरुआत एवं मताधिकार के विस्तार से भारतीयों की राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि हुई। इससे राजनीतिक चेतना बढ़ने के साथ सुधारों की मांग और भी प्रबल हुई थी।
- हालाँकि केंद्रीय विधायिका हेतु मतदाताओं की संख्या लगभग डेढ़ मिलियन तक बढ़ा दी गई थी, लेकिन उस समय भारत की जनसंख्या लगभग 260 मिलियन थी।
- भारतीय राजनीति का सांप्रदायिकरण: इस अधिनियम द्वारा सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की नीति को जारी रखा गया, जिसे बाद में पृथक निर्वाचक मंडलों के रूप में देखा गया। इससे भारतीय राजनीति के सांप्रदायिकरण को बढ़ावा मिलने के साथ धार्मिक आधार पर विभाजन को बढ़ावा मिला था।
- असंतोष: इस अधिनियम द्वारा भारतीय आकांक्षाओं को पूरी तरह से संतुष्ट नहीं किया जा सका।
- मोंटफोर्ड सुधारों को तिलक ने "अयोग्य और निराशाजनक- एक सूर्यहीन सुबह" कहा था।
निष्कर्ष:
उत्तरदायी सरकार एवं संसदीय प्रणाली जैसी प्रमुख अवधारणाओं को प्रस्तुत करने के बावजूद, इस अधिनियम के सीमित कार्यान्वयन ने चल रहे तनाव को बढ़ावा दिया जिससे भारत में व्यापक संवैधानिक सुधारों की मांगों को और अधिक बल मिला।